रिपोर्ट: दीक्षा राठौर
जगम्मनपुर, जालौन । भारतीय ग्रामीण जीवन का प्रमुख परिवहन एवं हमारी सांस्कृतिक जीवन शैली के रूप में रची बसी किंतु अब अनुपयुक्त हो चुकी बैलगाड़ी सड़क पर चलते देख यकायक चार दशक पुराना दूर याद आ गया ।
भारतीय ग्रामीण परिवहन एवं भारवाहन बैलगाड़ी अब मशीनरी युग के प्रभाव से गुजरे जमाने की स्मृतियों में ही रह गई है । वर्ष 1980 के दशक तक देश भर सभी गांवों में प्रत्येक किसान के यहां बैलगाड़ी रखने का प्रचलन रहा है । हर किसान अपने घर के सामने सुपुष्ट सुघड़ बैलों की जोड़ी देखना अपना स्वाभिमान समझता था । जिनके घर के दरबाजे पर बैलों की सबसेे ज्यादा अच्छी जोड़ी बंधी होती थी वह उसे क्षेत्र का संपन्न प्रभावशाली और प्रतिष्ठित लोगों में गिना जाता था । हिंदी फिल्म उपकार में भी गीत " बैलों के गले में जब घुंघरु, जीवन का राग सुनाते हैं .... गम कोसों दूर हो जाता है , खुशियों कमल मुस्काते हैं ।" अर्थात जब किसान के घर के बाहर बंधे बैल मस्ती से हर्दन हिलाते, बैलगाड़ी में जुते हुए अथवा खेतों में हल चलाते हुए बैलों के गले में बंधी घंटी की ध्वनि गूंजती थी तो संपूर्ण वातावरण आनंदित हो जाता था। प्रत्येक जनपद में पशु मेला का आकर्षण सजे धजे बैल एवं नए-नए बछड़े होते थे । जब किसी किसान के घर गाय बछड़े को जन्म देती तो उस घर में पुत्र जन्म जैसी खुशी मनाई जाती थी लेकिन कृषि के लिए जब से मशीनरी का उपयोग होना प्रारंभ हुआ है तभी से सनातन धर्म में धर्म का प्रतिरूप माना जाने वाला वृषभ अर्थात बैल शनैः शनैः किसानों के दरवाजे से गायब होता गया और अब तो पूरी तरह से गायब हो ही गया है । इक्कीसवीं शताब्दी में जन्म लेने वाले युवक किशोर एवं बच्चों से बैलगाड़ी अथवा बैलो के द्वारा हल बखर से कृषि करने के बारे में चर्चा करने पर वह आश्चर्यजनक ढंग कहने बाले का मुंह देखते हुए उसकी कथनी पर अविश्वास करते हुए बैलों की उपयोगिता एवं बैलगाड़ी को गप्प मानते हैं। लेकिन आज सोमवार को रामपुरा की ओर से जगम्मनपुर होते हुए अचानक एक बैलगाड़ी निकलते देखा तो उम्र दराज लोग आत्मानंद एवं कुतूहल पूर्वक चालीस साल पुरानी स्मृतियों में डूबकर हमउम्र लोगों से बीते जमाने के मनमोहक बातावरण पर चर्चा करने लगे वहीं नवयुवक आश्चर्य से इस बैलगाड़ी व उसमें सवार लोगों को देखने लगे और अपने अपने मोबाइल में फोटो खीचने लगे। बैलगाड़ी का संचालन कर रहे गुड्डू यादव एवं उसमें बैठे बयोबृद्ध मेहताब सिंह यादव निवासी रामपुरा (नगर) ने बताया कि हम लोग छोटे किसान हैं, ट्रैक्टर लेने की क्षमता नहीं है बैलों के सहारे अपनी खेती कर लेते हैं अनाज हमारा और बाकी सब कुछ हमारे पशुओं का होता है , खेती से हमारी आधा दर्जन गायों एवं एक जोड़ी बैलों सहित हमारे परिवार की गुजरबसर आराम से हो जाती है । बुजुर्ग मेहताब सिंह यादव ने कहाकि यदि किसान बैलों से खेती करें उससे हमारे गोवंश की रक्षा भी हो सकेगी एवं खेती की लागत में भी कमी आएगी । उन्होंने बताया कि हम अपने बैलों को अपने परिवार का सदस्य मानकर प्रत्येक त्योहार पर उनको नहला धुलाकर सजा बजाकर उनका पूजन करते हैं जिससे हमें असीम आनंदानुभूति होती है।